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गाँधी से एक मुलाकात असायलम में

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बात 2014 की है तब माहौल चुनावी  था  सब जगह राजनीतिक दल खुद को स्वच्छ व् ईमानदार स्वघोषित करने  की होड़ में एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे  थे  हलाकि कुछ की एड़ी छोटी पड़ रही थी तो कुछ की चोटी। और दूसरी तरफ मै मिल रहा था गाँधी जी से … जी हाँ मोहनदास करम चंद गांधी।  हालाँकि दुनिया के लिए वे ३० जनवरी १९४८ में ख़त्म कर दिए गए पर हकीकत तो  ये है कि गांधी कहा ख़त्म होते है वे तो मिल जाते है कही न कही तो मुझे भी मिल गए एक मेंटल असायलम में , इलाज चल रहा था उनका या यूँ कहे की इलाज चल रहा था उनकी ईमानदारी और निडरता का और डॉक्टर भी परेशान था  कि जिस  इंसान की ईमानदारी और निडरता इस स्टेज पर पहुंच गई हो वह जीवित कैसे रह सकता है इसे तो आजादी के पहले ही किसी तथाकथित  देशभक्त द्वारा मार दिया जाना चाहिए था या फिर सत्ता का लोभ देकर देशभक्त बना देना चाहिए था  या जेल भी तो है जहा चित्तगांव षडयंत्र में सूर्यकुमार जी जैसे क्रन्तिकारी के साथ  आजादी की लड़ाई लड़े कई देशद्रोहियो को आजादी के बाद बंद कर दिया गया यकीन न हो तो गूगल कर लो भाई कुछमें  से एक है अनंत सिंह जी जिन्हे 1960 तक जेल में रखा गया और बाद में फिर वे सरकार विरोधी हो गए और फिर उन्हें जेल में भेज दिया गया तो ये  तथाकथित गाँधी भी वहा पाए जा सकते थे पर ये खुद को गांधी कहने वाला इंसान है कौन। …. अब  ज्यादा मत चौकिये दरअसल बात २०१४ की है जब एक इंसान खुद को गांधी बता रहा था और उनकी ही तरह देशभक्त और निडर होने की बात कर रहा था… फिर क्या था डाल दिया उसे मेंटल असायलम में। मुझे जाने क्या सूझी तो मेंटल असायलम गया था मजे लेने पर मुझे क्या पता था की कोई मेरे मजे लेने बैठा है यहाँ बैसे मुझे यकीन नहीं था कि मुलाकात इतनी दिलचस्प हो जायेगी की मेरे जैसा इंसान जिसने कभी स्कूल के नोट्स पूरे नहीं बनाये लिखने के डर से वो भी लिखने को मजबूर हो उठेगा।  अब मुद्दे की बात पर आते है कि आखिर बात क्या हुई उनसे मेरी, यानि की तथाकथित गांधी और मेरी बात…  खैर आजकल तथाकथित गांधी भी कहा मिलते है बस या तो उनकी टोपी मिलती है या उनके नाम पर टोपी पिनाने वाले। मैने देखा तो एक दुबला पतला सा बड़े वालो का इंसान बड़ा उतावला सा बैठा है … आप चाहे तो सीटियां बजा सकते है क्यूकि यही है अपने मुख्य पात्र स्वघोषित गांधी जी।

मैंने जाते ही नमस्कार किया और बगल में बैठ गया उन्होंने भी बड़ी सरसता से सर हिलाया और बोले कहो कैसे आना हुआ. मैने कहा बस आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो इसलिए आया हूँ।

गांधी- अरे, मै तो पापी हूँ। …ऋणी हूँ इस देश का, मुझसे मिलने में कैसा सौभाग्य।

मै – अरे आप तो महात्मा है, सुभाष चंद्र बोस जी ने आपको राष्ट्रपिता की संज्ञा दी थी फिर आप पापी और ऋणी कैसे कह सकते है खुद को.

गाँधी – क्योकि में सत्य बोलता हूँ और निडर हूँ,… बात अगर कायरता और हिंसा की हो तो मे  हिंसा को उचित मानता हूँ और अपनी  मातृभूमि को माँ मानता हूँ और मेरे हाथो में इतनी शक्ति है की देश  बजुरी (रेत) से भी इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकता हूँ  इन सब पापियों, भ्रष्टाचारियों , और शोषको की बुनियाद हिला दे , फिर भी मै चुप हूँ तभी तो मै पापी हूँ और मेरे पास इतनी शक्ति है तभी तो मै ऋणी हूँ।

मै- पर बापू , देश तो अब स्वतंत्र है…. सब आजाद है आपको भी हमने अघोषित ही सही पर राष्ट्रपिता की उपाधि दे रखी है, ,हमारी मुद्रा पर आप ही छपते है चाहे विमुद्रीकरण से 500-1000 के नोटों की कीमत ख़त्म हो जाए पर आप दोबारा 2000 के नोट पर पुन: मुस्कुराते हुए उसी डीपी के साथ आ ही जाते है फिर आप इतने परेशान क्यों है ?…

गाँधी- क्युकी मै गांधी हूँ और मुझमे तार्किक व् दूरदृष्टि है मै आज की रणनीति को सालो बाद का  परिणाम सोचकर बनाता हूँ, असहयोग आंदोलन वापिस लेता हूँ क्युकी मेरी नजर सविनय अवज्ञा पर और भारत छोड़ो आंदोलन पर होती है।  जनता की सहन करने और ऊर्जावान रहने की क्षमता सीमित होती है  इसीलिए लड़ाई को लम्बा करने की जगह बार-बार लड़ने में विश्वास रखता हूँ।  और दो युद्धों के मध्य जनता से सीधा संवाद रखता हूँ , में जानता हूँ की दुश्मन कौन है और इसीलिए मै शांत रहता हूँ। .. पर … आज मेरी दूरदृष्टि धुंधली हो गई है।  जनता मेरी बात ही नहीं सुनती मै क्रांति कैसे लाऊँ? दुश्मन हममें से ही है हमारे रंग का ही है पर अब वो खुलेआम कोड़े नही बरसाता पर किसान अब भी चुपके से भूखा मरता है, हमारे लोग उन्ही गोरो, अंग्रेजो को हमसे श्रेष्ठ मानते है उनके जैसा बनने का स्वप्न देखते है ऐसे में मै अपना स्वप्न कैसे साकार करूँ? मै कैसे शांत रहूँ? … मै कैसे शांत रहूं?…

मै- कुछ देर शांत रहा फिर बोला कि हमारा देश तरक्की कर रहा है, जीडीपी बढ़ रही है, शिक्षा दर ऊँची हुई है, शतप्रतिशत बच्चे स्कूल में नामांकन करा रहे है और हमारे उद्योगपति  विदेशी कम्पनिया अधिग्रहित कर रहे है.  बापू अब जागुआर लक्जरी कर कंपनी भारत की हो चुकी है टाटा ने खरीदी है  और तो और हम अपने साथ आपकी लेबोरेटरी रही अफ्रीका का भी विकास कर रहे है।  आप इसपर क्या कहेगे?

गांधी – चहरे पर गुस्सा व हसी दोनों सजा कर कुछ देर रुक कर बोले वाकई, क्या हमारा स्वतन्त्र  देश तरक्की करा रहा है या फिर यूरोपीय उपनिवेश तरक्की कर रहा है?; एक कृषि प्रधान देश अपनी तरक्की में सेवा क्षेत्र को उत्तम मानता है और कृषि को निकृष्ट, जहां किसान आज भी उचित समर्थन मूल्य के लिए परेशान है, मानसून औसत से ज्यादा होने पर बाढ़ से परेशान तो मानसून कम होने पर सूखा से और तो और ये पारिःस्थिति एक साथ रहती है की देश के एक कोने मै सूखा तो एक जगह बाढ़ आजतक हम इन सदियों से चली आ रही आपदाओं से निपटने की रणनीति नहीं बना पाए फिर किस विकास की बात करते हो तुम।  यक़ीनन हमारा जीडीपी 7-8 % तक जा रहा है पर कैसा  विकास है ये जहाँ जनता आज भी गरीबी और भुखमरी से परेशान है, आज हर देशवासी व्यस्त है पैसा कमा रहा है पर कम्बख्त जरूरते पूरी ही नहीं होती …  आखिर हर देशवासी परेशान क्यों है ? जवाब ये है की इंसान है तो एक सामाजिक प्राणी पर आज उसे सबसे ज्यादा समस्या उसी समाज से है वो इस समाज से दूर होना चाहता है कटना चाहता है  प्रकृति से दूर होना चाहता है घर पर AC हो, जब बाहर जाना हो तो कार (जागुआर) AC हो, आफिस भी AC हो कही से भी प्रकृति स्पर्श न कर लें, . दरअसल हम गुलाम है आज भी उन प्रथाओं के और उसी कायरता का।  हमारे यहाँ दीवाली के पटाखे मुस्लमान बेचते है मंदिर निर्माण में कारीगरी तौफीक कि लाजवाब है फिर भी हम साम्प्रदायिकता की भावना से ग्रसित है और कायरो की तरह डरे रहते है  और जब कोई अपने लाभ के लिए भड़काता है तो हमारा यही डर गुस्सा और घृणा का काम करता है।

मै – भड़कते हुए..  परन्तु शुरुआत तो वे करते है।

xगांधी – अच्छा कुतर्क है….  शायद वो भी डरे रहते हो अपनी कायरता से परन्तु ये डर क्यों है हमारे अंदर ?  आजादी की लड़ाई में तो कन्धा से कन्धा मिलाकर लड़े थे चाहे हिन्दू हो मुस्लिम हो सिख हो सब मुझे बापू कहते थे  आज हम उनकी बातो में कैसे आ गए जो हमारे मुख्य शत्रु थे और मित्रो को दुश्मन बना लिया ..  पाकिस्तान हमने तात्कालिक कारणों से अलग होने दिया फिर वो दूरियां इतनी कैसे बढ़ गई जैसे खाई हो।  आज भी भ्रष्टाचार और मॅहगाई से हर धर्म का इंसान पीड़ित है फिर मुख्य मुद्दे को छोड़कर ये आपस में क्यों लड़ता है। ये तो उन गोरो का काम था फिर हमारे लोग ही क्यों एक दूसरे को लड़ा रहे है।  हमारे यहाँ धूप तेज पड़ती है तो हमारा रंग काला है पर हमें क्यों जबरन गोरा किया जा रहा है …. क्या मैने सच मैं स्वतंत्रता दिला पाई , कम से कम आजादीपूर्व हम सिर्फ शारीरिक गुलाम थे पर आज तो हम मानसिक गुलामी कर रहे है… क्या मैने स्वतंत्रता दिला पाई. (गाँधी आँखे साफ़ करते हुए… शायद कुछ नम हो गई थी)

मैने मन में सोचा कि ये इंसान  गांधी तो है नहीं और बातो से पागल भी नहीं लगता फिर ये है कौन?  मै  कुछ कहता इससे पहले ही वो फिर बोल पड़े…

शिक्षा की भी बात कर रहे थे तुम की सतप्रतिशत नामांकन तो  कौनसा तीर  मार लिया भाई ऐसा कौनसा माँ-बाप होगा जो अपने बच्चे को पड़ाना न चाहे, वो तो ब्रिटिश के समय साक्षरता कम थी क्युकी हमने कालेज छोड़ने का आह्वान किया था क्युकी वे गलत शिक्षा दे रहे थे . लेकिन फिर आजादी के बाद भी क्यों अधिकांश बच्चे ८-१० कक्षा में ही स्कूल छोड़  देते है और जो आगे पड़ते है उन्हें क्यों रोजगार नहीं मिलता।  मेरा नाम इतिहास के नाम पर क्यों रटाया जाता है? बातें समझाने का प्रयत्न क्यों नहीं होता?,आठवीं पास को अपना नाम क्यों नहीं लिखाना आता? और हमारे उद्योगपति अफ्रीका जाकर  खनन करते है और लाभ कमाते है पर हिंसा तो वहां भी हो रही है परेशान तो वहां के लोग भी है और विकास भी ज्यादा नहीं दिखता तो कही हम भी तो वही नहीं कर रहे है जो गोरो ने हमारे यहाँ किया।

मै- अरे ये तो खुद में कुतर्क हुआ हमें  अपने लोगो पर विश्वास होना चाहिए।

गाँधी – बिलकुल विश्वास करो और मैने भी जनता पर किया और जनता नई भी मुझ पर किया था पर आज हम इतने परेशान क्यों है जनता प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के चुनाव मई बड़ी उतावली रहती है पर उनके गलत या करप्ट होने पर राजनीती को कोसती है  पर मै यहाँ फिर पूछना चाहता हूँ की एक गाँव जिसमे २०००-५००० तक मतदाता होते है और हर एक व्यक्ति दूसरे को घर के अंदर तक  जनता है फिर प्रधान कैसे भ्र्स्ताचारी निकल जाता है कही हम तंत्र को भ्रस्ट कहते कहते लोक के अंदर ही झाँकन तो नहीं भूल गए क्युकी ये तंत्र लोक ने ही चुना है. क्यो मतदाता मदिरा और मॉस के लिए अपना वोट बेच देता है?  अरे गाँव में  किसको क्या जरुरत है , कौन खेत में खेती हुई, कौन की बर्बाद हुई ये कौन पता करेगा कहा रोड बनना चाहिए ? कहा बारिस का पानी रोका जाये और कहा शौचालय बनवाया जाये ये तय करने कौन आएगा? प्रधानमंत्री या प्रधान  अरे इन सब मुद्दों के लिए आवेदन तो प्रधान ही करेगा मनरेगा में तुम्हे प्रधान ही रखेगा और गाँव के विकास कार्य वो ही कराएगा फिर भी क्या तुम्हारे वोट की कीमत एक मदिरा की बोतल और चखना था। ..और इसीलिए मैंने हमेशा गांव की राजनीति को सशक्त करने का आह्वान किया है।

मै-  अच्छा बापू ये बताओ की आपको इन्होने यहां क्यों बंद किया है ?

गाँधी- क्योकि मै निडर हुं  और देश की दुर्गति पर परेशान हूँ  और क्रोधित भी, पर लोगो को तो शांत गांधी की आदत है जैसा किताबो में मुझे पढ़ाया जाता है,  लोगो ने वैसा ही रट लिया  अगर समझा होता तो समझते पर जो रट लिया है तो अब मैं खुद भी बोल रहा हूँ लेकिन मानने को तैयार ही नहीं।

मै- कुछ लोग आपको गालिया क्यों देते है बुरा भला क्यों कहते है?

गाँधी – क्योकि मै उनसे प्यार करता हूँ और सुनने में आया है कि यहाँ के लोगो को आजकल प्यार से डर लगता  है साहब। … वैसे सत्य ये है की मैंने इनके लिए कुछ नहीं किया मैंने जिनके लिए किया उन्होंने मुझे सरांखो पर बैठाया पर मेरे देह त्यागते ही ये देश फिर खो गया इन लोगो को तो आजादी मिली ही नहीं तो फिर मै  इनसे सम्मान की अपेक्षा क्यों रखूँ।  पर मैंने जिनके लिए किया था जिनकी आजादी के लिए लड़ा था उन्ही में से किसी ने मुझे मार दिया शायद उसे लगा हो की मैंने उसे कुछ नहीं दिया या फिर उसका कुछ नुकसान कर बैठा।

मै- आपने सारी उम्र आम इंसान की तरह गुजारी,  चरखा  चलाया पहना खुद सूत काटा फिर  भी लोग आपको किस चीज का लालची मानते है जबकि आपने कोई पद भी नहीं लिया, आखिर आपने  क्यों नहीं लिया कोई पद ।

गाँधी- वो क्या सोचते है उनकी वो जाने और मैंने काम देश के लिए किया था और ये प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति पद मैंने सृजित किये थे इनका भला मुझे कैसे लोभ होता।  और तो और मैंने कभी ये भी नहीं कहा की मुझे राष्ट्रपिता कहो या बापू कहो पर लोगो को मुझसे जुड़ाव दिखाने और जनता को विश्वास दिलाने मुझे उपाधिया दी अपनी मुद्रा पर मेरी फोटो  लगा दी अब तो और इससे मै हर जुर्म और हर गुनाह को सबसे नजदीक से देखता हूँ पर जनता को कैसे बतलाऊँ? ये नहीं जानता।मै- आपने भगतसिंह को क्यों नहीं बचाया ?

गाँधी – देश को आजादी चाहिए थी न की भगतसिंह देश को भगतसिंह का नाम चाहिए था उनका काम चाहिए था उनका ही नहीं बल्कि उनके साथ सुखदेव, आजाद, सूर्यसेन जैसे हजारो देशभक्त  योद्धा जिन्होंने देश के लिए जीवन न्योछावर कर दिया ये सब चाहिए था और तुम्हे क्या लगता है कि ये सब मेरे प्रिय नहीं थे, अरे ये सब मेरे सबसे प्रिय बच्चे थे जिनको मुझे देश के लिए कुर्बान करना पड़ा. तुम्हे क्या लगता है कि ये धूर्त गोरे मेरे कहने पर फांसी  माफ़ कर देते अरे ये गोर तो ये चाहते थे कि मै इनकी रिहाई का मुद्दा उठाऊं और ये मुझे भी आतंकवादी घोषित करके गोली मार दे. लाला जी को लाठियों से मार दिया अकेले आजाद को अल्फ्रेड पार्क में हजारो के झुंड ने घेर लिया और ऐसा नहीं था की इन सैनिको में सारे गोर थे बल्कि इनमे  ज्यादा संख्या तो हमारे भारतीयों की थी तो क्या मुझे उन बच्चो की क़ुर्बानीं को व्यर्थ जाने देना चाहिए था या फिर आजादी की लड़ाई आगे कैसे लड़ी जाए ये सोचना चाहिए था।  गोरो ने मुझे जेल से बातचीत के लिए निकाला और मै अभागा चाहते हुए भी अपने प्रिय बच्चो को न बचा सका यहाँ तक की मै तो उनकी शहीदी पर आँसू भी न बहा सका न ही किसी के कंधे पर जाकर रो सका क्योकि उनका बलिदान महत्वपूर्ण था और मुझे इसे अंतिम बिंदु पर ले जाना था।  खैर अब राजनीती करने को लोग जो भी कहना चाहे ये जनता जाने और वे जाने इस पर मेरी सफाई देने से कुछ नहीं होगा बस मुझे गर्व है हर एक क्रन्तिकारी पर जिसने आजादी के लिए निष्पक्षता से काम किया और सिर्फ एक नाम लेकर अन्य को कम साबित मत करो क्यूँकी आजादी सबके सम्मिलित बलिदान का एक परिणाम है. .

मै- तो आज किसकी जरुरत है गांधी की या भगतसिंह की।

गांधी – दोनों की नहीं , उस समय भगतसिंह जैसे लोगो ने जनता में जोश भरा उन्हे जगाया और गाँधी ने उन्हें जोड़ा उस समय दोनों की जरुरत थी क्योकि सरकार बहरी थी  पर आज ऐसा नहीं है   … आज लोकतंत्र है समाचार पत्र निकालने  कि आजादी है, आलोचना करने का अधिकार है बस अगर जरुरत है तो: खुद की,…  लोक द्वारा स्वयं को पहचानने की अपने को समेटने की…  अपने प्रतिनिधि को सही चुनो, जागरूक रहो, स्वहित में उठो किसी का अंधानुकरण मत करो, तार्किक बनो।  बस फिर देश आजाद हो जाएगा  और बन जाएगा मेरे सपनो का देश भगत के सपनो का देश। मै- तो क्या देश आजाद नहीं है ?

गाँधी- आर्मी का काम होता है बाहर देशो से हमारी रक्षा करना परन्तु देश के ४०% भाग पर अभी भी आर्मी तैनात है, क्या ये है आजादी? तमिलनाडु में बैठकर कश्मीर पर बोलने वाले को  वास्तविक परिस्थिति का पता नहीं चल सकता है पर फिर भी वह सिर्फ खुद को सही समझता है विवेक इस्तेमाल नहीं करता आखिर  अपना अधिकार मांगना देशद्रोह कैसे हो सकता है,…  कुछ राजनीती से प्रेरित अलगाववादी पहले जाकर आम जनमानुष को परेशान करते है फिर आर्मी भी आम आदमी से ही कठोरता से पूछताछ करती है क्युकी वे गुमनाम चेहरे तो कायरता का चेहरा लगा के आये थे और चले गए। .. क्या आपने कभी तार्किक होकर सोचा है की 1950 से 1980  तक भारत के पक्ष वाले कश्मीर मै ये अलगाववादी कैसे पैदा हो गए आखिर 1990 से ही वहां अफ्स्पा क्यों लगा है।  क्यों २७ से अधिक  साल बीत गए पर मुद्दा नहीं सुलझा अगर ये धार्मिक मामला है तो फिर १९८० के चुनाव  में  हुई गड़बड़ी के बाद ही क्यों विकराल हुआ. कही ये सपाट राजनितिक मामला तो नहीं है जिसे हम धार्मिक मामला समझकर इलाज किये जा  रहे हो और बीमारी ठीक होने के बजाये और साइड इफेक्ट से ग्रसित  होती जा रही हो ।  जब एक बोले तो अपराधी हो सकता है पर यदि एक छोड़कर सब बोले तो क्या सबको देशद्रोही करार देकर दूसरा जलियावाला कांड करना  चाहते हो…  और कुछ राज्य उत्तर प्रदेश या बिहार से नफरत करते है लेकिन कश्मीर पर ही जाने क्यों उनका देशप्रेम उमड़ता है, …. और..

मै- बीच में टोकते हुए बापू इतनी संजीदा मुद्दे पर बात मत करो, लोग नहीं समझेंगे

गाँधी- मै तो निडर हूँ , सत्य  बोलता हूँ जब गोरो से नहीं डरा तो इन कायरो से क्या डरूँगा  जो मेरी लड़ी लड़ाई से प्राप्त सत्ता को  भोग रहे है।  मै आज भी चाहुँ तो मुट्ठी भर रेत से इतना बड़ा आंदोलन ला सकता हूँ जो न किसी ने देखा होगा  न सुना होगा लेकिन फिर सोचता हूँ किसके खिलाफ लाऊँ उस वक्त तो गोरो के खिलाफ लाया था तो उन्होंने  मुझे देशद्रोही करार दे दिया था जिसकी मुझे फिकर नहीं थी पर अब तो देशवासी ही देशद्रोही कह देंगे।

मै- तो मै क्या समझूँ की निडर बापू डर गए।

गाँधी- डर क्या है ? डर कायरता नहीं बल्कि डर एक परिस्थिति है जब हम किसी से प्यार करते है और उसे खोने या उसके मन में गिरने का ख्याल हो तब उस मनोस्थिति को डर कहते है।   और मेरे अंदर वही परिस्थिति  है तो शायद हाँ मै डरा हूँ।  क्युकी मै अपने देशवासियो से प्यार करता हूँ। मै- आपने अपने बचपन में घटित कुछ गलत बातो जैसे मॉस सेवन, धूम्रपान को स्वयं जगजाहिर क्यों किया?

गाँधी- क्योकि मै लोगो को बताना चाहता था की अच्छा काम करने के लिए बचपन से स्वच्छ छवि होना जरुरी नहीं है , आप इसे किसी भी समय से शुरू कर सकते है, अगर आप बचपन मै गलतिया कर चुके है और अब सुधरना चाहते है तो दरवाजे हमेशा खुले है और आप मेरे स्तर तक भी पहुँच सकते है.. और मै मानवजाति के बारे में एक अनुभव और रखता हूँ की कभी सतप्रतिशत समर्थक या विरोधी नहीं हो सकते ये पूरक के रूप में रहते है जितने कट्टर आलोचक होंगे उतने ही कट्टर समर्थक होगे।  अफ्रीका में  मैंने उन लोगो की लड़ाई लड़ी जो अनजान थे लेकिन  फिर भी १९०९ में मेरे ऊपर जानलेवा हमला हुआ तब मैं ये समझ गया की मनुस्य में खोजने की प्रवत्ति होती है…  तभी अच्छे कार्यो में बुराई खोजता है और बुरे में अच्छाई, अरे खोजने से याद आया की कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ये खोजने के लिए ही तो लोगो ने १८०० करोड़ से ज्यादा खर्च कर दिए।  खैर हमे निंदा से डरना नहीं  चाहिए बल्कि समझना चाहिए  हमारा पथ सही है या नहीं ? क्योकि निंदा करने वाले हमेशा पीठ पीछे बाते करते है ताकि लोग तुम्हारी वजह से उन्हें भी जाने, उनका भी प्रचार हो।मैं-  लोग कहते है की ईश्वर कुछ लक्षय के साथ अवतरित होते है और लक्षयप्राप्ति पर पुन; कही स्वर्ग में चले जाते है और गांधीजी भी भारत की आजादी का लक्षय लेकर आये थे और आजादी मिलने  पर अंत:ध्यान हो गए।  क्या ये सच है ? क्या गाँधी ईश्वर का अवतार थे ?

गाँधी – नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है मैं ईश्वर नहीं परन्तु शायद १९४८ तक मेरा कार्य पूर्ण हो गया था अत;  ईश्वर ने मुझे अपना दूत भेजकर बुला  लिया, मुझे प्रसन्नता है की मेरे मारने वाले की आँखों में भी मेरी मौत पर आँसू ही थे। मैं- तो क्या आप नाथूराम गोड़से को ईश्वर का भेजा हुआ दूत मानते हैं?

गाँधी- अवश्य ! ईश्वर की मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता।

मैं- अच्छा तो आप पून; कैसे अवतरित हो गए क्या भारत को आपकी जरुरत आन पड़ी है?

गाँधी- ये तो तुम्हे निस्चत करना है की क्या तुम्हे मेरी जरुरत आन पड़ी है।  क्योकि गाँधी तो सिर्फ एक नाम है जिसकी ताकत तो देश की जनता है मैं अहिंसावादी किसीका क्या बिगड़ लूंगा बिना जनता के. और फिर तुम मानो  तो  मै  गाँधी  हुँ और तुम चाहो तो एक पागल निर्णय तो हमेशा तुम्हारे ही हाथ में  ही है। 

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